चुनावी डूंज वायरो , पांच बरस में आय ।उड़े रोड़्या रो कचरो, मंदर उॅंचों जाय ।।मंदर ऊँचो जाय , वे पेर गळा में हार ।आवे विरला जीत , मोड़-मोड़ पे मनवार ।।के ’वाणी’ कविराज ,राखजो काण कायदो ।पाछा जावो जीत
काळा-काळा बादळा
काळा–काळा बादळा, गांवा–गांवा जाय ।खेतां–खेतां बावणी, मोर–पपैया गाय ।।मोर–पपैया गाय , पाणी ईमरत धारा ।बेतो–बेतो जाय , कहावे नंदी नारा ।के ‘वाणी’कविराज , चाल्या ओरवा वाळा ।।कोठ्यां भरदो धान, बादळा काळा–काळा ।।
कवि , कविता और श्रोता (कवि अमृत ‘वाणी’)
रचना कार कवि अमृत’वाणी (अमृत लाल चंगेरिया )रिकॉर्ड :- 28/2/2009
आंबा वाया मोकळा
आम्बा वाया मोकळा , देशी नाक्यो खाद ।पोता–पोती खावता , मने करेगा याद ।।मने करेगा याद , गजब का हा दादाजी ।ग्या बेकुंठा माय , कहे धरती माताजी ।।के ‘वाणी’ कविराज, होचजो लोग–लुगाया ।कुण–कुण करसी याद, थां कई आम्बा वाया
दूध की गंगा बहायें
मनुश्यमशीने बनाता-बनाताआज खूद मशीन बन गयाजिसेमशीने भी नहीं समझ पा रही है किउसमें कहां-कहां विकृतियां मेरा दावा हैदुनिया की कोई भी मशीनएक दिन सब कुछ कर लेगीमगरअधूरे इंसान का पूरा ईलाजकभी नहीं कर पाएगी क्योंकि इसके तोनस-नस में इतना विष
जवानी की कहानी
जवानी ऐसी आग है जो आग से ही बुझती कैसे जैसे लोहा लोहे को काटता है । आश्चर्य तो यह जो इस आग को बुझाने आते बड़े शौक से रजाबंदी से खुद भी जल जाते वे आग बुझाते ही रहते
रोटी का टुकड़ा
सौ मंजिल ऊँची ईमारत केसुनहरी झरोखे सेगोरे हाथों ने फेंकाएक सूखी रोटी का टुकड़ाजो गिरासीधा एक भिखारी के कटोरे मेंऔर झटके से बंद कर दिएसतरंगी चूडियों नेकांच के किंवाड़भिखारी चला गयाकिन्तु मैं अभी तक वहीं खड़ा हूँतभी से सोच रहा
कर्जो काळो नाग हे
जाता-जाता के गया , बूडा-ठाडा लोग |कर्जो काळो नाग हे , लख उपजावे रोग ||लख उपजावे रोग , मूंगी ईंकी दवाई |आंसू केता जाय , लोग हूणे न लुगाई ||के ‘वाणी’ कविराज , मले मूंडा मचकाता|छीप-छिप काढे दांत , भायला
कवी अमृत ‘वाणी’ की कविता ‘ प्राइवेट बस ‘
कवि अमृत ‘वाणी’
सुनो शिल्पकार
अरे शिल्पकारधन्यवाद तुम्हें बारम्बारधन्य तुम्हारी कला ,धन्य तुम्हारे छैनी गज और हथोड़ेजो गिनती में बहुत थोड़े | आश्चर्य तुम पंद्रह दिनों में हीकिसी भी उपेक्षित पत्थर को भगवन बना देते होहम कलम के धनी होकरपन्द्रह वर्षो में भीइन्सान को इन्सान