वह भी हारा

वह भी हारा जो अंतिम स्वांस तक लड़ता – लड़ता दुश्मनों से हारा उससे ज्यादा वह हारा जिसने दुश्मनों के सामने डाल दिए हथियार और उठा लिए अपने हाथ उपर उससे ज्यादा तो वे हारे जिन्होंने हथियार ही नहीं उठाए

वंदे मातरम् मिल कर गाए

आओ ऐसे दीप जलाए |अंतर मन का तम मिट जाए || मन निर्मल ज्यूं गंगा माता |राम भरत ज्यूँ सारे भ्राता || रामायण की गाथा गाए |भवसागर से तर तर जाए || चोरी हिंसा हम दूर भगाए |वंदे मातरम् मिल

कवि अमृत ‘वाणी’ एक परिचय

लेखक शिक्षा अमृत ‘वाणी’ अमृत लाल चंगेरिया (कुमावत)वास्तु शास्त्री एंव नक्शा नवीस एम . ए. , एम. एड . . व्यवसाय प्राध्यापक (हिन्दी) रा. उ. मा. वि. सेंथी चित्तौड्गढ़ (राज) पता 134 B प्रताप नगर चित्तौड्गढ़ (राज) फ़ोन +91 1472

लौटेगी हरियाली

हरियाली घटती रही , हुए जंगल वीरान |चिंता सताए शेर को , सब कुछ क्यों वीरान ||सब कुछ क्यों वीरान , आज कैसे दिन आए |नहीं जंगली जीव, खाएं तो किसे खाए ||कह ‘वाणी’ कविराज , पीओ चाय की प्याली

चलो घूमे सुबह सुबह

सुबह चुनो शाम चुनलो , चाहो जितने फूल |खुश हो देवी देवता , देते हमको फूल ||देते हमको फूल , चलेंगे वंश हमारे |देव वृक्ष को पूज , धुल जाय पाप तुमारे ||कह ‘वाणी’ कविराज , चलेगी पुरवाई वह |रोग

तोते

तोतेएक सुबह के भूखे तोतेशाम के सूर्यास्त को देख करमेरी सो साल कीभाविस्य्वानी न करोसामने के चोराहे को देख करबस इतना सा बताओकी घर लोतुन्गाया हास्पिटलया सीधा मगघटवहांएक तोता और हेमेरे मोहल्ले में वहा बता देगामुझे कल का भविष्य |

बहरे कई प्रकार के

बहरे कई प्रकार के, भांत – भांत के लाभ |जब तक काम पड़े नहीं, तब तक लाभ ही लाभ ||तब तक लाभ ही लाभ , चिल्ला कर वक्ता कहे |मन मन हँसता जाय , वक्ता का पसीना बहे ||कह ‘वाणी’

गुनाह

गुनाहों की दुनिया मेंह्महर गुनाह से बचते रहेइसीलिए कि हमारेनन्हें मासूम बच्चे हैंमगरबेगुनाह होना हीकितना बड़ा गुनाह हो गयाकिआज कल गुनहगारों की बस्ती मेंबेगुनाहों के घरसरे आम तबाह हो रहें |