गाँव का अनपढ़ भोळाबा की रई जसी मुसीबत वीं दान एकदम परवत जसी विकराल बणगी, जणी बगत मोटा शहर में हात–आठ जणा का हण्डाउं कजाणा कसान ई वे अचानक बिछुड़ग्या । हाल तो एक घण्टोई न व्यो वेई अन छीज–छीज
शिक्षा
केवल मुद्रा-बल सेविभिन्न प्रकार कीमुद्राएं बना-बना करपीछले कई वर्शों सेकहीं दिन कोकहीं रात कोकहीं सुबह कोकहीं शाम कोभांत-भांत केहजारों विद्यालयों मेंलाखों अधूरेकर रहेंकरोड़ों को पूरेकर रहेकरोड़ो पूरे । इसीलिएअब तकना तो उन्हें बना सके पूरेनास्वयं ही बन सके पूरे ।
प्राईवेट मोटर
प्राईवेट मोटर मेंम्हारा सासरा कादो रूप्याई लागे ।पणसरकारी गाड़ी को कण्डक्टरआठ रूप्या मांगे ।। मूं बोल्योथू पैसा पूरा लेवेअनटिकट आदोई न देवे ।वो बोल्योअरे भोळा जीवइनै तो रोड़वेज की नौकरी केवे ।। मूं बोल्योसरकारी गाड़्या मेंअतरो भाव बढ़ग्यो ।ओरम्हारा ढाई
बहुत कुछ
आज तकआज नहीं तो कलसबको मिलता रहाउसकीजरूरत मुताबिककुछ ना कुछ ।आप ही बताइये जनाबजहान में आज तककिसको नसीब हुआसब कुछ ।। फिर भीलाखों लोगलाखों बारन जाने क्योंबेवजहरोते–रोते चले गएकुछ तोआज भी रो रहेकुछबेशककल तक रोने ही वाले देखोदेखोतीनों किस्मों केचाहो
बिकाउ साईकिल
साथियोंसच एकअतिसुंदर साईकिलबिकाउ है साहब ।भगवान ही जानेकेरियर कहां परपेडल और पीछे का पहिया गायब ।। सुंदरसी सीट हैगजब की घण्टी हैकितनेग्यारह घण्टों की गारण्टी है ।अतितीव्र गति से चलतीवायु में उड़तीविषेशताएक्सीडेण्टबहुत जल्दि करती है ।। टूटा हुआ हेण्डल हैपहिले
प्रेम रंग
चाय अन कप के न्यान होळी रो त्योहार अन रंग एक दूजा का असा लाड़ला साथी र्या थका के एक के बना दूजा ने एकल्लो रेबो आज तक कदी हुंवायोई कोनी । ज्यूं-ज्यूं होळी को तेवार लगतो-लगतो आवे ख्ूणा-खचारा में
आज भी जिंदा है
शहीदों की अंतिम श्वांसो पर हर इतिहासआज भी जिंदा हैचंद बंदों की खिदमतों परआसमां का खुदाआज भी जिंदा हैं सुर-ताल सेकलमकारोंआग और पानीबरसाओं तो जानेवेदीपक और मल्हार रागें तोआज भी जिंदा हैं ।
जिन्दगी
अगर वेमहजश्वांस लेने को हीजिन्दगी समझते हैंतो जाओउन्हें कहदोकिबेशकहम जी रहे हैं
पनघट के प्रहरी
सुर्ख इतना कह देतें प्यास कितनी गहरी हैपनिहारिनों की चलेंबता देती हैंगागर कितनी भरी है युगो-युगो से होती आईप्यास परछलकती गागर कुर्बानमगरफिर भी क्योंघट-घट परपनघट के प्रहरी हैं ।
डबल बेड
उठ डबल बेड से बंद कर रेड़ियो, पंखा, टी. वी., टेप ,कुलर और निकल देहलीज से बाहर लेकर दोपहर का टिफिन करके खून का पानी बहादे पसीना खरीद मेहनत के बाजारों से उन हीरों के बदले रोटी जल्दि लौट आना