क्यों झूंठ बोलते होप्रजातंत्र के बेल्टकितुम बांधते हो पेंट कोऔर सम्हालते पेट को बोलोकब बांध सकेकब संभाल सकेनेताओं के पेट को जब-जबबांधने का प्रयास कियासागर कीलहरों की तरहांनेताओं का पेटबढ़ता ही गयाऔर तुमढ़लते सूरज की तरहांघटते ही गए सुप्रीम कोर्ट
सलीका जीने का
इत्तफाक सेजीते जीमिल जाएकिसी कोसलीका जीने का फिरएक लम्हा ही बहुत हैइस जहान मेंउसके जीने का
जिगर
जिगर मेंहजारों कांटे हैंहजारोंकांटों में जिगर है सारे कांटेयही कहते हैंवाह !तेरा भीक्या जिगर है ।
सत्य
जन्म प्रथमऔरमृत्युजीवन का अंतिम सत्य है इन्हेंहर बारराजा-रंक फकीर कोजन-जन कोनत मस्तक होकरस्वीकार करना ही पड़ता है । यहजी भर के हंसाएयाजी भर के रूलाएहर बारआंसूखारे ही बहते हैं । अर्थात्सत्य हंसाएया रूलाएआंखों मेंउसके अहसासों कीशबनमी तश्वीरइसीलिएहर वक्तएक जैसी ही
मछली
यह सभी जानतेजिन्दगीपानी का बुलबुला हैंलेकिनकितने यह जानते हैंक्योंहर बुलबुले कीहर आंख मेंहर वक्तआंसू ही आंसू हैं जो-जो भीयह राज जान गएफिर वेसंसार मेंइस तरहां जीएजैसे जीती हैंमछलियां ठण्डे पानी मेंउनकी पीढ़ियों मेंआज तककिसी कोजुकाम नहीं हुआ हे प्रभु!इस बुलबुले
कविता कवि और श्रोता (कवि अमृत ‘वाणी’)
रचना कार कवी अमृत’वाणी (अमृत लाल चंगेरिया )रिकॉर्ड :- 28/2/2009
महामंत्र
यह सत्य हैमनुश्यइस वासनामय संसार मेंधृतराष्ट्र की तरहअंधे ही जन्म लेते हैं। किन्तुयह समस्यादुगुणी होकरसौगुणी तब हो जाती हैजबपतिव्रता गांधारी भीअपने ही हाथों सेअपनी ही आंखों परकाली पट्टी बांधपति के समकक्ष होजन्म दे देतीसौ-सौ पुत्रों को । दोनों में से
हरे वृक्ष मत काटो
किसको खबर है पल की , कब तक क्या हो जाय । होती कमी अब जल की, कौन कहाँ तक जी पाय ।। कौन कहाँ तक जी पाय , चले कोठियों में कुलर । करे फ्रीज जल-पान , तपे निर्धन
बारां बिन्द (कवि अमृत ‘वाणी’ कविता बाल विवाह पर आधारित )
रचनाकार कवि अमृत’वाणी (अमृत लाल चंगेरिया कुमावत )रिकॉर्ड :- 28/2/2009
परसाद्यो भगत (राजस्थानी कहानी)
आकाई गाँव में दो नाम मनकां की जिबान पे छड्या थका हा। एक भगवान शंकर को नाम अन एक वांको लाड़लो परसाद्यो भगत । यो गाँव बस्यो जदकाई ये दोई नाम गाँव के साथे-साथे रिया । गांव वाळा को कसोई