उठ डबल बेड से
बंद कर
रेड़ियो, पंखा, टी. वी., टेप ,कुलर
और निकल
देहलीज से बाहर
लेकर दोपहर का टिफिन
करके खून का पानी
बहादे पसीना

खरीद
मेहनत के बाजारों से
उन हीरों के बदले रोटी

जल्दि लौट आना घर
मुस्कुराती हुई
संध्या के साथ

जहां उसी देहलीज पर
सुबह से खड़े प्रतीक्षारत
ममत्व, वात्सल्य, भ्रातृत्व, श्रद्धा, स्नेह
और
उन सबके बीच
चीर प्रतीक्षारत,
स्वागतातुर ,मुस्कुराता हुआ
पूर्णिमा का चांद

बांट दे
तू बांट दे
भूख के मुताबिक
सबको रोटी

आज सब्जी भी मय्यसर नहीं
तो खालो
मुस्कान औेर तसल्ली के साथ
और पीलो
नशीब की मटकी का
ठंडा पानी

क्योंकि
अभी तो पढ़ना है तुझे
चंद्रप्रकाश में
चंद्रमा के
चंद रहस्यमय सवाल

तू
आज ही

सितारों के अक्षर बना-बना कर
लिखले तमाम उत्तर
बेदाग कॉपी पर
सत्य, संक्षिप्त और सुंदर

क्योंकि
सुबह तो
फिर सूरज आजाएगा
एक साथ
खिड़की, दरवाजों
और रोशनदानों से
लेकर
कल के वास्ते
कितने ही
फिर
नए-नए सवाल

अमृत ‘वाणी’

डबल बेड