कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।

राम चालीसा कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।किरपा करजो मोकळी ,रोज नमावां सीसहुणजो माता जानकी ,दया करे रघुवीर ।चारो  पुरसारथ मले, ओर मले मावीर ।। शब्दार्थ -लाड़ला-परम प्रिय, केवावे-कहलाते है ,जग- संसार,मोकळी-अपार,रोज-प्रतिदिन,नमावां-नमन करते, सीस-मस्तकभावार्थः-कौशल्या माता के अनन्य , प्रिय पुत्र

ram chalisa लेखकीय

संसार का दाता प्रत्येक जीवात्मा को उसके प्रारब्धानुसार कुछ ना कुछ ऐसा अवश्य देता है जो अन्य की तुलना में निसंदेह कुछ हद तक अतिविशिश्ट होता है। न जाने यह मेरे किस जन्म की भक्ति का प्रारब्ध है कि मां

तोते

तोतेएक सुबह के भूखे तोतेशाम के सूर्यास्त को देख करमेरी सो साल कीभाविस्य्वानी न करोसामने के चोराहे को देख करबस इतना सा बताओकी घर लोतुन्गाया हास्पिटलया सीधा मगघटवहांएक तोता और हेमेरे मोहल्ले में वहा बता देगामुझे कल का भविष्य |

बहरे कई प्रकार के

बहरे      कई   प्रकार   के,    भांत –     भांत   के लाभ |जब तक काम पड़े  नहीं, तब तक लाभ ही लाभ ||तब तक लाभ ही लाभ ,  चिल्ला कर वक्ता  कहे |मन मन हँसता जाय , वक्ता का  पसीना बहे ||कह ‘वाणी’

गुनाह

गुनाहों की दुनिया मेंह्महर गुनाह से बचते रहेइसीलिए  कि हमारेनन्हें  मासूम बच्चे हैंमगरबेगुनाह होना हीकितना  बड़ा गुनाह  हो  गयाकिआज कल गुनहगारों की बस्ती मेंबेगुनाहों  के  घरसरे आम तबाह हो रहें  |

चवन्नी और अठन्नी

आज कलजहाँ देखो वहाँकई मितव्ययी दांतपराई अठन्नी को भीइतनी जोर से दबाते हैंकिबेचारी अठन्नीदबती – दबती चवन्नी बन जातीजब भीवह खोटी चवन्नी निकलतीइतनी तेज गति से निकलतीकि उन कंजूस सेठों का जबड़ा हीबाहर निकल जाताऔरइस एक ही झटके में शरीर

सांप हमें क्या काटेंगे !!

सांप हमें क्या काटेंगेहमारे जहर सेवे बेमौत  मरे जायेंगेअगर हमको काटेंगे ? कान खोल कर सुनलोविषैले   सांपोवंश समूल नष्ट  हो जायेगाजिस दिन हम तुमको काटेंगेक्यों क्योंकिहम आस्तीन के सांप हे | अमृत ‘वाणी’

अब हमको देना वोट

महंगाई की मार पड़ी , दिया कमर को तोड़ |हो गए हम विकलांग सभी , खड़े हैं  सब हाथ जोड़ ||खड़े हें सब हाथ जोड़ , कौन  पूंछे हाल हमारे |साथी सब गये छोड़ , दूर बहुत हैं किनारे ||मंत्री

हर इंसा की जिंदगी में

हर इंसा की जिंदगी में                           कम से कम एक बार                           एक ऐसा दौर आना चाहिए कि                           उस दौर के दौरान वो शख्स                           हर दौर से गुज़र जाना चाहिए |                           अमृत ‘वाणी’