कवि अमृत वाणी की राजस्थानी कविता एक नेता जी जमी जुमई दुकान का कविता पाठ किशोर जी पारीक के साथ चित्तोडगढ मे
चार दिनों की जिन्दगी
चार दिनों की जिन्दगीयूंगुजर गई भाई |दो दिनहम सो ना सकेदो दिननींद नहीं आई कवि अमृत“वाणी”
बुद्धि मुझे दो शारदा
बुद्धि मुझे दो शारदा, सदन शीघ्र बन जाय ।कर पूरण स्वर-साधना, देऊ तुझे बिठाय ।। देऊ तुझे बिठाय, विराजो मेरे घर में ।ऐसे गीत लिखाय , हो प्रकाश अंतस में ।। कह `वाणी` कविराज, चित्त में शुध्दी मुझे दो |रचूं
आज का आदमी
आज का आदमीअपनी गरीबी के कारणबहुत कमऔरपडोसियों की तरक्की से बहुत ज्यादा दुखी है अमृत ‘वाणी‘
झटपट बरसादो पाणी
कवि:- अमृत‘वाणी‘
हुआ है श्रीगणेश
काम बड़ा ही काम का , हो गया श्रीगणेश । सावधानी यह रखना , नाम रहे ना शेष ।। नाम रहे ना शेष , नहीं गिनावे दुबारा । पहले उनसे पूछ , कब तक रहेगा प्यारा । ’वाणी ’ मिलते
सुन्दर प्रगणक
सारी जनता जानती ,क्या जनगणना होय ।सुन्दर प्रगणक देखके , मदद करे सब कोय ।।मदद करे सब कोय ,पूछो काम की बातें ।बता तेरा पड़ोस, मिंया बीबी की बातें ।।‘वाणी‘पूरा ध्यान ,बोले कोई कुंवारी ।निकले अर्थ अनेक ,पछतायगा तू भारी
मायड़ भाषा
मायड़ भाषा लाड़ली, जन-जन कण्ठा हार ।लाखां-लाखां मोल हे, गाओ मंगलाचार ।। वो दन बेगो आवसी ,देय मानता राज ।पल-पल गास्यां गीतड़ा,दूणा होसी काज ।। अमृत ‘वाणी’
एक्स्ट्रा क्लास
बस्ता उठा टिंकू चला , चार चोराहे पार |थक कर जब स्कूल पहुंचा , पता लगा रविवार ||पता लगा रविवार , नहीं बजेगा घंटा घंटी |पड़ेगी घर पर मार , नहीं कल की गारंटी ||फिर चलाया दिमाग , मम्मी करनी
आज का आदमी
आज का आदमीअपनी गरीबी के कारणबहुत कमऔरपडोसियों की तरक्की से बहुत ज्यादा दुखी है अमृत ‘वाणी’