हरे वृक्ष मत काटो

किसको खबर है पल की , कब तक क्या हो जाय । होती कमी अब जल की, कौन कहाँ तक जी पाय ।। कौन कहाँ तक जी पाय , चले कोठियों में कुलर । करे फ्रीज जल-पान , तपे निर्धन

तार

आज कलकिसी से कोई काम करवाना होकई दिनों तक वह केवल आप की बात सुनता हैकई महीनो तक केवल विचार करता है फिरकुछ मिनटों का कामकुछ महीनों में निपटा देता है यही कार्य प्रणालीकई ऑफिसरोंकर्मचरियों के घट- घट मेंईश्वर की

नाई की दूकान

दूकान पर जाकर बोलेसुनलो नाई पुत्र नरेश ।आजजल्दि डाढ़ी बनादोगाड़ी पकड़नी है एक्सप्रेस ।। इसे उठादेहजामत की कुर्सी परमुझे बिठादे ।इनके पैसे भीमुझसे लेलेनामुझे जल्दि से जल्दि निपटादे ।। शर्माजी की शादी हैहमें बारात की बस में बैठना ।मनुहारें तो

मिटटी का फैंसला

लाल कोठी परलगी संगमरमर की फर्शफर्श पर चांदी का सिंहासनजिस पर बैठाकबर में पैर लटकाएबुड्डा कुबेरकांपते हुए हाथों सेथामी हुईसोने की थालीसोने की कटोरियों मेंचांदी के चम्मचडूबे हुए मूंग की दाल के हलवे मेंऔर पास मेंकाजू बादाम वालेदूध का गिलास

चाँद

बार–बार देखें सभी , इतना प्यारा रूप ।कोई कहता चांदनी , कोई कहता धूप ।।कोई कहता धूप , करे सब नो–नो बातें ।एक उपाय विवाह , चांदनी सी सब रातें ।।कह ‘वाणी’ कविराज, दिल की सुनो पुकार ।अपना है जब

प्यास

मई-जून कीइस तपती दोपहरी मेंफ्रिज केठण्डे जल कागिलास भी मेरे लिएरूचिकर नहीं हैक्योंकिअभी-अभी तोसो कर उठा हूँमैंकूलर की हवा से ।

दूध की गंगा बहायें

मनुश्यमशीने बनाता-बनाताआज खूद मशीन बन गयाजिसेमशीने भी नहीं समझ पा रही है किउसमें कहां-कहां विकृतियां मेरा दावा हैदुनिया की कोई भी मशीनएक दिन सब कुछ कर लेगीमगरअधूरे इंसान का पूरा ईलाजकभी नहीं कर पाएगी क्योंकि इसके तोनस-नस में इतना विष

जवानी की कहानी

जवानी ऐसी आग है जो आग से ही बुझती कैसे जैसे लोहा लोहे को काटता है । आश्चर्य तो यह जो इस आग को बुझाने आते बड़े शौक से रजाबंदी से खुद भी जल जाते वे आग बुझाते ही रहते

रोटी का टुकड़ा

सौ मंजिल ऊँची ईमारत केसुनहरी झरोखे सेगोरे हाथों ने फेंकाएक सूखी रोटी का टुकड़ाजो गिरासीधा एक भिखारी के कटोरे मेंऔर झटके से बंद कर दिएसतरंगी चूडियों नेकांच के किंवाड़भिखारी चला गयाकिन्तु मैं अभी तक वहीं खड़ा हूँतभी से सोच रहा

सुनो शिल्पकार

अरे शिल्पकारधन्यवाद तुम्हें बारम्बारधन्य तुम्हारी कला ,धन्य तुम्हारे छैनी गज और हथोड़ेजो गिनती में बहुत थोड़े | आश्चर्य तुम पंद्रह दिनों में हीकिसी भी उपेक्षित पत्थर को भगवन बना देते होहम कलम के धनी होकरपन्द्रह वर्षो में भीइन्सान को इन्सान