एक नेताजी की जमी जमाई दूकान असी खतम होगी ,किईं चुनाव में तो वांकी जमानत ही जप्त होगी । बाजार में मारा पग पकड़ बोल्या मर्यो कविराज ,ईं चुनाव में मारी ईं भारी हार को थोड़ो बताओ राज । में
सबसे बड़ा दुःख
आता है अचानक दौड़ता हुआ सबसे बड़ा दुःखजो कुछ ही समय में एक ही सवाल सेसबका इम्तिहान लेकरचला जाता हैआहिस्ता-आहिस्ता जिन्दगी कीछोटी सी किताब मेंअपने ही हाथों से वो एक नया पाठलिख कर जाता है जिसमें बिना किसी पक्षपात केसाफ-साफकई
आतंकी घाटियां
आतंकी घाटियॉंऔर रेगिस्तानइन दोनों मेंकेवलदो ही अंतर खास है । पहला अंतररेगिस्तान मेंपानीखून की तरहां बहता हैऔर आतंकी घाटियों मेंखूनपानी की तरहां बहता है ।। दूसरा अंतररेगिस्तान मेंआदमी की मौत के लिएयह बहुत जरूरीकिवह दिखने में गुनहगार होकिन्तुआतंकी घाटियों मेंआदमी
वें हजारों बार जीए
शहरों में कई लोगइसलिए मर रहेंकिउन्हें जीना नहीं आयाऔर कई लोगमहजइसीलिए जी रहें किउन्हें मौत नहीं आ रही । बचे हुए लोगरो रहेकुछ उनके वास्तेजो बेमौत मर गएकुछ उनके वास्तेजोन जाने कब मरेंगे । चंद भले लोगचंद भले लोगों के
धोती-जब्बा पगड़ी
धोती-जब्बा-पगड़ीमाथे पर तिलक और चोटीगले में मालाराम-नाम का दुषालागायों को चराने के लिएलूटेरों को डराने के लिएहाथ में लठ यह सब कुछ देखविगत कुछ वर्शों सेषहरों के कई लोगमुझे इस तरहां देखतेजैसेमैं उनकी टी टेबल पर पड़ा हूँ कल का
मृत्यु
मृत्यु केकुछ रूप देखे हैंमैंनेएक वोजिसमेकुछ लोगजीते जी मर जाते हैं ।एक वोजिसमेंकुछमर कर भी जीते हैं ।एक वो भी हैजिसमें कुछ ऐसे भी हैंजोमर कर ही जीते हैंऐ पुरूषार्थी रथ !समय-समय परसभी कोबताते रहनाकैसी-कैसी मृत्युकरेगी उनका आलिंगन ।।
ओटेमेटिक घड़ी
ऐ मेरीओटेमेटिक घड़ीकाश मैंने तुझसेइतना ही सीख लिया होताबस मुझे चलना हैतेरी तरह सर्दी-गर्मी-बरसातआंधी-तूफांदिन हो या रातराह मेंफूल हो या कांटेहर हाल में चलना हैहर दिनदिन-रात चलना है अगरइतना ही सीख लिया होतातो आजमेरी घड़ीइतनी नाजुक नहीं होती अच्छे-अच्छेघड़ी-घड़ीमेरी घड़ी
शिक्षा
केवल मुद्रा-बल सेविभिन्न प्रकार कीमुद्राएं बना-बना करपीछले कई वर्शों सेकहीं दिन कोकहीं रात कोकहीं सुबह कोकहीं शाम कोभांत-भांत केहजारों विद्यालयों मेंलाखों अधूरेकर रहेंकरोड़ों को पूरेकर रहेकरोड़ो पूरे । इसीलिएअब तकना तो उन्हें बना सके पूरेनास्वयं ही बन सके पूरे ।
प्राईवेट मोटर
प्राईवेट मोटर मेंम्हारा सासरा कादो रूप्याई लागे ।पणसरकारी गाड़ी को कण्डक्टरआठ रूप्या मांगे ।। मूं बोल्योथू पैसा पूरा लेवेअनटिकट आदोई न देवे ।वो बोल्योअरे भोळा जीवइनै तो रोड़वेज की नौकरी केवे ।। मूं बोल्योसरकारी गाड़्या मेंअतरो भाव बढ़ग्यो ।ओरम्हारा ढाई
बहुत कुछ
आज तकआज नहीं तो कलसबको मिलता रहाउसकीजरूरत मुताबिककुछ ना कुछ ।आप ही बताइये जनाबजहान में आज तककिसको नसीब हुआसब कुछ ।। फिर भीलाखों लोगलाखों बारन जाने क्योंबेवजहरोते–रोते चले गएकुछ तोआज भी रो रहेकुछबेशककल तक रोने ही वाले देखोदेखोतीनों किस्मों केचाहो