सुनो शिल्पकार

अरे शिल्पकारधन्यवाद तुम्हें बारम्बारधन्य तुम्हारी कला ,धन्य तुम्हारे छैनी गज और हथोड़ेजो गिनती में बहुत थोड़े | आश्चर्य तुम पंद्रह दिनों में हीकिसी भी उपेक्षित पत्थर को भगवन बना देते होहम कलम के धनी होकरपन्द्रह वर्षो में भीइन्सान को इन्सान