जाता-जाता के गया , बूडा-ठाडा लोग |कर्जो काळो नाग हे , लख उपजावे रोग ||लख उपजावे रोग , मूंगी ईंकी दवाई |आंसू केता जाय , लोग हूणे न लुगाई ||के ‘वाणी’ कविराज , मले मूंडा मचकाता|छीप-छिप काढे दांत , भायला
कवी अमृत ‘वाणी’ की कविता ‘ प्राइवेट बस ‘
कवि अमृत ‘वाणी’
सुनो शिल्पकार
अरे शिल्पकारधन्यवाद तुम्हें बारम्बारधन्य तुम्हारी कला ,धन्य तुम्हारे छैनी गज और हथोड़ेजो गिनती में बहुत थोड़े | आश्चर्य तुम पंद्रह दिनों में हीकिसी भी उपेक्षित पत्थर को भगवन बना देते होहम कलम के धनी होकरपन्द्रह वर्षो में भीइन्सान को इन्सान
वह भी हारा
वह भी हारा जो अंतिम स्वांस तक लड़ता – लड़ता दुश्मनों से हारा उससे ज्यादा वह हारा जिसने दुश्मनों के सामने डाल दिए हथियार और उठा लिए अपने हाथ उपर उससे ज्यादा तो वे हारे जिन्होंने हथियार ही नहीं उठाए
वंदे मातरम् मिल कर गाए
आओ ऐसे दीप जलाए |अंतर मन का तम मिट जाए || मन निर्मल ज्यूं गंगा माता |राम भरत ज्यूँ सारे भ्राता || रामायण की गाथा गाए |भवसागर से तर तर जाए || चोरी हिंसा हम दूर भगाए |वंदे मातरम् मिल
कवि अमृत ‘वाणी’ एक परिचय
लेखक शिक्षा अमृत ‘वाणी’ अमृत लाल चंगेरिया (कुमावत)वास्तु शास्त्री एंव नक्शा नवीस एम . ए. , एम. एड . . व्यवसाय प्राध्यापक (हिन्दी) रा. उ. मा. वि. सेंथी चित्तौड्गढ़ (राज) पता 134 B प्रताप नगर चित्तौड्गढ़ (राज) फ़ोन +91 1472
लौटेगी हरियाली
हरियाली घटती रही , हुए जंगल वीरान |चिंता सताए शेर को , सब कुछ क्यों वीरान ||सब कुछ क्यों वीरान , आज कैसे दिन आए |नहीं जंगली जीव, खाएं तो किसे खाए ||कह ‘वाणी’ कविराज , पीओ चाय की प्याली
चलो घूमे सुबह सुबह
सुबह चुनो शाम चुनलो , चाहो जितने फूल |खुश हो देवी देवता , देते हमको फूल ||देते हमको फूल , चलेंगे वंश हमारे |देव वृक्ष को पूज , धुल जाय पाप तुमारे ||कह ‘वाणी’ कविराज , चलेगी पुरवाई वह |रोग
काला धुँआ
मुझे दिख रहा तुम्हारा चेहरा धुन्धलाऔरतुम्हें मेराक्योंकि दोनों के बीच मेंभौतिकता काकाला धुँआ |
तोते
तोतेएक सुबह के भूखे तोतेशाम के सूर्यास्त को देख करमेरी सो साल कीभाविस्य्वानी न करोसामने के चोराहे को देख करबस इतना सा बताओकी घर लोतुन्गाया हास्पिटलया सीधा मगघटवहांएक तोता और हेमेरे मोहल्ले में वहा बता देगामुझे कल का भविष्य |