बुद्धि मुझे दो शारदा, सदन शीघ्र बन जाय ।कर पूरण स्वर-साधना, देऊ तुझे बिठाय ।। देऊ तुझे बिठाय, विराजो मेरे घर में ।ऐसे गीत लिखाय , हो प्रकाश अंतस में ।। कह `वाणी` कविराज, चित्त में शुध्दी मुझे दो |रचूं
एक्स्ट्रा क्लास
बस्ता उठा टिंकू चला , चार चोराहे पार |थक कर जब स्कूल पहुंचा , पता लगा रविवार ||पता लगा रविवार , नहीं बजेगा घंटा घंटी |पड़ेगी घर पर मार , नहीं कल की गारंटी ||फिर चलाया दिमाग , मम्मी करनी
आज का आदमी
आज का आदमीअपनी गरीबी के कारणबहुत कमऔरपडोसियों की तरक्की से बहुत ज्यादा दुखी है अमृत ‘वाणी’
ram chalisa लेखकीय
संसार का दाता प्रत्येक जीवात्मा को उसके प्रारब्धानुसार कुछ ना कुछ ऐसा अवश्य देता है जो अन्य की तुलना में निसंदेह कुछ हद तक अतिविशिश्ट होता है। न जाने यह मेरे किस जन्म की भक्ति का प्रारब्ध है कि मां
तोते
तोतेएक सुबह के भूखे तोतेशाम के सूर्यास्त को देख करमेरी सो साल कीभाविस्य्वानी न करोसामने के चोराहे को देख करबस इतना सा बताओकी घर लोतुन्गाया हास्पिटलया सीधा मगघटवहांएक तोता और हेमेरे मोहल्ले में वहा बता देगामुझे कल का भविष्य |
बहरे कई प्रकार के
बहरे कई प्रकार के, भांत – भांत के लाभ |जब तक काम पड़े नहीं, तब तक लाभ ही लाभ ||तब तक लाभ ही लाभ , चिल्ला कर वक्ता कहे |मन मन हँसता जाय , वक्ता का पसीना बहे ||कह ‘वाणी’
गुनाह
गुनाहों की दुनिया मेंह्महर गुनाह से बचते रहेइसीलिए कि हमारेनन्हें मासूम बच्चे हैंमगरबेगुनाह होना हीकितना बड़ा गुनाह हो गयाकिआज कल गुनहगारों की बस्ती मेंबेगुनाहों के घरसरे आम तबाह हो रहें |
चवन्नी और अठन्नी
आज कलजहाँ देखो वहाँकई मितव्ययी दांतपराई अठन्नी को भीइतनी जोर से दबाते हैंकिबेचारी अठन्नीदबती – दबती चवन्नी बन जातीजब भीवह खोटी चवन्नी निकलतीइतनी तेज गति से निकलतीकि उन कंजूस सेठों का जबड़ा हीबाहर निकल जाताऔरइस एक ही झटके में शरीर
सांप हमें क्या काटेंगे !!
सांप हमें क्या काटेंगेहमारे जहर सेवे बेमौत मरे जायेंगेअगर हमको काटेंगे ? कान खोल कर सुनलोविषैले सांपोवंश समूल नष्ट हो जायेगाजिस दिन हम तुमको काटेंगेक्यों क्योंकिहम आस्तीन के सांप हे | अमृत ‘वाणी’
अब हमको देना वोट
महंगाई की मार पड़ी , दिया कमर को तोड़ |हो गए हम विकलांग सभी , खड़े हैं सब हाथ जोड़ ||खड़े हें सब हाथ जोड़ , कौन पूंछे हाल हमारे |साथी सब गये छोड़ , दूर बहुत हैं किनारे ||मंत्री