आओ ऐसे दीप जलाए | अंतर मन का तम मिट जाए || मन निर्मल ज्यूं गंगा माता | राम भरत ज्यूँ सारे भ्राता || रामायण की गाथा गाए | भवसागर से तर तर जाए || चोरी हिंसा हम दूर भगाए
जीवन ढल गया………..
जो जलना था वो सब जल गया ।जो गलना था वो सब गल गया ।।‘वाणी’ दर्द, दर्द सा लगता नहीं अब ।दर्द के सांचों में जीवन ढल गया ।। कवि अमृत ‘वाणी’
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नीलाम्बर के उस पार…..
नीलाम्बर के उस पार छिपकर बैठा वो अचूक बाजीगर विगत लाखों वर्शो से जिसको जैसे नचाना चाहता है उसे उसकी लाख इन्कारियों के बावजूद भी उसी तरह नाचना पड़ता है जिस तरहां ईश्वर चाहता है। वह ऐसा हठीला हाकिम भी
मायानगरी का अनुज : इन्दौर
मालवांचल का महानगर, मायानगरी का अनुज, अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों से सुसज्जित, अनन्त प्रगति पथ का अहर्निष धावक, षील से विकासषील, सतरंगी सृजनधर्मिता का अतिसक्रिय स्थल, नैसर्गिंक सौन्दर्य का अक्षय भण्डार, रेल- मार्ग का मकड़ जाल, कोटि-कोटि नयनों का त्राटक बिन्दु,
बिन्दी और नौ
एक महान गणितज्ञमर्म-मर्म के मर्मज्ञविषय के ऐसे विशेषज्ञहर वक्तगणित के सवालों में खोए हुए रहते थेजगे हुए भी मानोसोए हुए लगते थे। भ्रकुटी फूल साइज में तनी हुईललाट पर सल पर सल दिखाई देते थे,मजाक है नाक पर मक्खी बैठ
यही हमारी दीवाली
दीवाली आ गईभारी अफसोसकई महंगी रस्मे निभानी होगीगमगीन मासूम चेहरों परभारी नकली मुस्कानें लानी होगी ढ़हने को व्याकुल खण्डहरों परडिस्टेम्पर करना होगाकाले तन तन मन को फिरसतरंगी वस्त्रों से ढकना होगाजल कर राख हो गए कभी केबुझे दिल से फिर
वंदे मातरम् मिल कर गाए
आओ ऐसे दीप जलाए |अंतर मन का तम मिट जाए ||मन निर्मल ज्यूं गंगा माता |राम भरत ज्यूँ सारे भ्राता || रामायण की गाथा गाए |भवसागर से तर तर जाए || चोरी हिंसा हम दूर भगाए |वंदे मातरम् मिल कर
चार दिनों की जिन्दगी
चार दिनों की जिन्दगीयूंगुजर गई भाई |दो दिनहम सो ना सकेदो दिननींद नहीं आई कवि अमृत“वाणी”
चार दिनों की जिन्दगी
चार दिनों की जिन्दगीयूंगुजर गई भाई |दो दिनहम सो ना सकेदो दिननींद नहीं आई कवि अमृत“वाणी”