चोपा चराय लीछमी , आली काम्ड़ी हात ।बणावा सरपंच थने , चालो म्हाके साथ ।।चालो म्हाके साथ , थां दो गाँवा री शान ।थांके आड़ी आज , नाळ रयो वो भगवान ।।के ‘वाणी’ कविराज , अंगूटो दियो दिखाय ।करे न
झूंठ फेर झूंठी कही
उूबा वे सकता नहीं ,उूबा-उूबा जाय ।फारम भर्यो पंच को , टेको दीजो भाय ।।टेको दीजो भाय , काले पड़सी वोट ।मूं मां जायो बीर , कोने म्हारा में खोट ।।के ’वाणी’ कविराज , झूंठ फेर झूंठी कही ।जमानता भी
हार्या केड़े
हार्या केड़े देखजो , कठे-कठे ही खोट ।कतरा जिगरी कर गया ,हरता-फरता चोट ।।हरता-फरता चोट ,उड़ाग्या मूंडा रा रंग ।हाल-चाल बेहाल , कदी न कर ऐसो संग ।।के ’वाणी’ कविराज, जद दारू-पाणी नेड़े ।पी-पी के जो जाय , आय कुण
चुनावी डूंज वायरो
चुनावी डूंज वायरो , पांच बरस में आय ।उड़े रोड़्या रो कचरो, मंदर उॅंचों जाय ।।मंदर ऊँचो जाय , वे पेर गळा में हार ।आवे विरला जीत , मोड़-मोड़ पे मनवार ।।के ’वाणी’ कविराज ,राखजो काण कायदो ।पाछा जावो जीत
काळा-काळा बादळा
काळा–काळा बादळा, गांवा–गांवा जाय ।खेतां–खेतां बावणी, मोर–पपैया गाय ।।मोर–पपैया गाय , पाणी ईमरत धारा ।बेतो–बेतो जाय , कहावे नंदी नारा ।के ‘वाणी’कविराज , चाल्या ओरवा वाळा ।।कोठ्यां भरदो धान, बादळा काळा–काळा ।।
आंबा वाया मोकळा
आम्बा वाया मोकळा , देशी नाक्यो खाद ।पोता–पोती खावता , मने करेगा याद ।।मने करेगा याद , गजब का हा दादाजी ।ग्या बेकुंठा माय , कहे धरती माताजी ।।के ‘वाणी’ कविराज, होचजो लोग–लुगाया ।कुण–कुण करसी याद, थां कई आम्बा वाया
लौटेगी हरियाली
हरियाली घटती रही , हुए जंगल वीरान |चिंता सताए शेर को , सब कुछ क्यों वीरान ||सब कुछ क्यों वीरान , आज कैसे दिन आए |नहीं जंगली जीव, खाएं तो किसे खाए ||कह ‘वाणी’ कविराज , पीओ चाय की प्याली
चलो घूमे सुबह सुबह
सुबह चुनो शाम चुनलो , चाहो जितने फूल |खुश हो देवी देवता , देते हमको फूल ||देते हमको फूल , चलेंगे वंश हमारे |देव वृक्ष को पूज , धुल जाय पाप तुमारे ||कह ‘वाणी’ कविराज , चलेगी पुरवाई वह |रोग
बहरे कई प्रकार के
बहरे कई प्रकार के, भांत – भांत के लाभ |जब तक काम पड़े नहीं, तब तक लाभ ही लाभ ||तब तक लाभ ही लाभ , चिल्ला कर वक्ता कहे |मन मन हँसता जाय , वक्ता का पसीना बहे ||कह ‘वाणी’
राजस्थानी राम चालीसा
राम राम शिवजी जपे ,हर हर बोले राम | दुई नाम लारे जपो ,सिध्द होय सब काम || राजस्थानी राम चालीसा का दोहा अमृत ‘वाणी‘