जो जलना था वो सब जल गया ।जो गलना था वो सब गल गया ।।‘वाणी’ दर्द, दर्द सा लगता नहीं अब ।दर्द के सांचों में जीवन ढल गया ।। कवि अमृत ‘वाणी’
नोटा री गड्डियां
नोटा री गड्डियांअन कलदारां री खनक में तो ई दुनिया में हगलाई हमझे । पण लाखीणा मनक तो वैज वेवे जो रोजाना मनक ने मनक हमझे ॥ ‘वाणी’अतरी झट बदल जावे ओळखाण मनकां कीआछा दनां में मनकमनक ने माछर हमझे