दोश्त

आओ , सभी से हॅंस-हॅंस कर मिले ।  मतलबी आॅंखें कल खुले ना खुले ।।  ’वाणी’ ऐसे हाथ मिलाओ दोश्तो से ।  जमाना कहे आज इनकेे नशीब खुले ।।     कवि अमृत ‘वाणी’

नोटा री गड्डियां

नोटा री गड्डियांअन कलदारां री खनक में तो ई दुनिया में हगलाई हमझे । पण लाखीणा मनक तो वैज वेवे  जो रोजाना मनक ने मनक हमझे ॥ ‘वाणी’अतरी झट बदल जावे ओळखाण मनकां कीआछा दनां  में मनकमनक ने माछर  हमझे