चोपा चराय लीछमी , आली काम्ड़ी हात ।बणावा सरपंच थने , चालो म्हाके साथ ।।चालो म्हाके साथ , थां दो गाँवा री शान ।थांके आड़ी आज , नाळ रयो वो भगवान ।।के ‘वाणी’ कविराज , अंगूटो दियो दिखाय ।करे न
झूंठ फेर झूंठी कही
उूबा वे सकता नहीं ,उूबा-उूबा जाय ।फारम भर्यो पंच को , टेको दीजो भाय ।।टेको दीजो भाय , काले पड़सी वोट ।मूं मां जायो बीर , कोने म्हारा में खोट ।।के ’वाणी’ कविराज , झूंठ फेर झूंठी कही ।जमानता भी
प्यास
मई-जून कीइस तपती दोपहरी मेंफ्रिज केठण्डे जल कागिलास भी मेरे लिएरूचिकर नहीं हैक्योंकिअभी-अभी तोसो कर उठा हूँमैंकूलर की हवा से ।
मेरी वेब साईट मेरे निजी ख्यालों का
मेरी वेब साईट मेरे निजी ख्यालों का यानि कि जिंदगी से जुड़े हुए रूहानी नजरियों का वो कागजी पुलिंदा है जो ठसाठस भरे हुए बैंक लोकर्स से भी लाखों गुना ज्यादा अपनी जाईन्दा औलादों की तरहां बेहद अजीज है। अमृत‘वाणी’
हार्या केड़े
हार्या केड़े देखजो , कठे-कठे ही खोट ।कतरा जिगरी कर गया ,हरता-फरता चोट ।।हरता-फरता चोट ,उड़ाग्या मूंडा रा रंग ।हाल-चाल बेहाल , कदी न कर ऐसो संग ।।के ’वाणी’ कविराज, जद दारू-पाणी नेड़े ।पी-पी के जो जाय , आय कुण
चुनावी डूंज वायरो
चुनावी डूंज वायरो , पांच बरस में आय ।उड़े रोड़्या रो कचरो, मंदर उॅंचों जाय ।।मंदर ऊँचो जाय , वे पेर गळा में हार ।आवे विरला जीत , मोड़-मोड़ पे मनवार ।।के ’वाणी’ कविराज ,राखजो काण कायदो ।पाछा जावो जीत
काळा-काळा बादळा
काळा–काळा बादळा, गांवा–गांवा जाय ।खेतां–खेतां बावणी, मोर–पपैया गाय ।।मोर–पपैया गाय , पाणी ईमरत धारा ।बेतो–बेतो जाय , कहावे नंदी नारा ।के ‘वाणी’कविराज , चाल्या ओरवा वाळा ।।कोठ्यां भरदो धान, बादळा काळा–काळा ।।
कवि , कविता और श्रोता (कवि अमृत ‘वाणी’)
रचना कार कवि अमृत’वाणी (अमृत लाल चंगेरिया )रिकॉर्ड :- 28/2/2009
आंबा वाया मोकळा
आम्बा वाया मोकळा , देशी नाक्यो खाद ।पोता–पोती खावता , मने करेगा याद ।।मने करेगा याद , गजब का हा दादाजी ।ग्या बेकुंठा माय , कहे धरती माताजी ।।के ‘वाणी’ कविराज, होचजो लोग–लुगाया ।कुण–कुण करसी याद, थां कई आम्बा वाया
दूध की गंगा बहायें
मनुश्यमशीने बनाता-बनाताआज खूद मशीन बन गयाजिसेमशीने भी नहीं समझ पा रही है किउसमें कहां-कहां विकृतियां मेरा दावा हैदुनिया की कोई भी मशीनएक दिन सब कुछ कर लेगीमगरअधूरे इंसान का पूरा ईलाजकभी नहीं कर पाएगी क्योंकि इसके तोनस-नस में इतना विष