मंजिल यँू बढ़ती रहे, बने वह विजय-स्तम्भ । अजातशत्रु सभी यहाँ, बने प्रकाश–स्तम्भ ।। बने प्रकाश–स्तम्भ, जगत सौ–सौ सुख पावें । समझ कर वास्तु–ज्ञान, स्वर्ग–सा सदन बनावें ।। कह `वाणी´ कविराज, होय सभी पल–पल सफल । कष्ट कभी ना होय,
मंजिल यँू बढ़ती रहे, बने वह विजय-स्तम्भ । अजातशत्रु सभी यहाँ, बने प्रकाश–स्तम्भ ।। बने प्रकाश–स्तम्भ, जगत सौ–सौ सुख पावें । समझ कर वास्तु–ज्ञान, स्वर्ग–सा सदन बनावें ।। कह `वाणी´ कविराज, होय सभी पल–पल सफल । कष्ट कभी ना होय,