किसको खबर है पल की , कब तक क्या हो जाय ।
होती कमी अब जल की, कौन कहाँ तक जी पाय ।।
कौन कहाँ तक जी पाय , चले कोठियों में कुलर ।
करे फ्रीज जल-पान , तपे निर्धन इधर-उधर ।।
कह‘वाणी’ कविराज ,धरती बाँट गगन बांटो ।
लो सभी शपथ आज ,तुम हरे वृक्ष मत काटो ।।
हरे वृक्ष मत काटो