यह सत्य है
मनुश्य
इस वासनामय संसार में
धृतराष्ट्र की तरह
अंधे ही जन्म लेते हैं।
किन्तु
यह समस्या
दुगुणी होकर
सौगुणी तब हो जाती है
जब
पतिव्रता गांधारी भी
अपने ही हाथों से
अपनी ही आंखों पर
काली पट्टी बांध
पति के समकक्ष हो
जन्म दे देती
सौ-सौ पुत्रों को ।
दोनों में से कभी
कोई किसी को
भूल कर भी
भला-बुरा नहीं कहते
क्योंकि
दोनों ही अंधे हैं ।
आधुनिक युग की
कई गांधारियों के
कई बेटे ऐसे हैं
जो
जीवन कुरू-क्षेत्र
शुरू होने के
पहले ही शहीद हो जाते
कुछ इतने कमजोर हैं
लाख कोशिशें करो उन पर
कोई अस्त्र-शस्त्र
उठते ही नहीं
कुछ बचे हुए सबको यूं कहते हैं
जो भी हैं
सब कुछ हम ही हैं
और उनकी
तमाम प्रोग्रेस रिपोर्टों में
वे कुछ भी नहीं हैं ।
आज विज्ञान के
नटखट कन्हैया ने
कहीं
शिखंडियों के घर
दीपक जलाएं हैं
कहीं
हजारों एकड़
उसर को
सर-सब्ज बनाया है ।
साक्षरता,प्रौदाशिक्षा,
रेड़ियो,टी0वी0,टेप,अखबार
आदि के द्वारा
अनन्त प्रज्ञा-चक्षुओं से
कई गान्धारियों की
काली पट्टियाँ खोली हैं
प्रत्यक्ष बताया
देख
देख अपने वंश को
पीछड़ते,लड़ते-झगड़ते,कटते
और मच्छरों की तरहां
बेमौत मरते ।
असह्य सत्य को देखते ही
धृतराष्ट्र ने
पुनः अंधे होने की ठानी
गांधारी ने भी पुनः
अपनी काली पट्टी संभाली
तभी आधुनिक
विज्ञानावतारी नटखट कन्हैया ने
दोनों के हाथ थाम लिए
कहा , ‘‘तुम्हें रोशनी
इसलिए नहीं दी कि
जीवन-संघर्ष में
तबाही के मंजर देख कर
तुम पुनः अंधे हो जाओ
सन्तानों को
ईश्वर की देन बताते रहो और
कामांधता के सरगम गाते रहो ।
नहीं,नहीं,नहीं
उस युग में तुमने
सौ-सौ बेटों का
यानिकी सौ-सौ कांटों का
हृदय-विदारक मृत्यु-कष्ट झेला
भूल कर उसे
दौहराने लग गए
फिर वही गलतियां ।
युग बदल गया
वह द्वापर था
यह कलियुग है
वह धर्म-युद्ध था
यह अर्थ-युद्ध है
वह अठारह दिनों का नवजात शिशु
और यह
जीवन की पहली श्वांस से लेकर
आखिरी श्वांस तक
यानिकी पूरे सौ साल तक
हर रोज चलने वाला
बहुमुखी युद्ध है ।
मसलन
एक रूपये में
पिता ने
पहली कक्षा में दाखिला लिया
बच्चे के लिए
अब पहली कक्षा में
एडमिशन के लिए
हजार रूपये चाहिए
देखा युद्ध को
तलवारों की धार
कुछ ही वर्षों में
हजार गुनी तीखी हो गई ।
स्वार्थों की जंग में पल-पल
कट-कट कर गिर रहे हैं
नैतिकता के शीष
भ्रष्टाचारी रण-चण्डी का खप्पर
अब भी पूरा खाली है
रेलों के स्ट्रीम इंजनों की तरहां
दहाड़ती हुई
दिन भर दौड़ती रहती
जेबों का रक्त पीने ।
युद्ध का आंखों देखा हाल
कुछ इस प्रकार है
अर्थ महाभारत के कोटि-कोटि
महायोद्धाओं को बिल्कुल सही तरह से
बहुत बुरी तरह से एनिमिया हो गया
भीतर ही भीतर
सरकार की तरह
सुख – सूख कर
बिल्कुल सफेद पड़ गए
कहीं-कहीं
सरकारी डाक्टर
ईलाज कर रहें
और जगह-जगह
प्राईवेट लोग
हिमोग्लोबिन चेक कर रहे हैं
सरकारी डाक्टरों की परेशानी
यूं बढ़ रही है
कहीं
बीमारी नजर नहीं आती
कहीं
बीमार नजर नहीं आते
मरीज दिनों-दिन बढ़ रहें
देश में हॉस्पिटल कम पड़ रहे ।
इसलिए आज बता कर जाता हूं
हर दम्पत्ति के लिए
सौ-सौ बीमारियों की एक दवा
जैसे मलयाचल पर्वत की हवा
दोनों मुमुक्षु अर्थात्
प्राणेश्वरियाँ और प्राणनाथ
मिलाकर स्वर में स्वर
मिलाकर हाथ में हाथ
इस महा मंत्र को
सौ-सौ बार पढे़
सौ-सौ बार सूने
यह
अवश्यंभावी
मोक्षप्रदायी
महामंत्र
केवल तीन शब्दों का है
हमदो हमारे दो।