बुद्धि मुझे दो शारदा, सदन शीघ्र बन जाय ।
कर पूरण स्वर-साधना, देऊ तुझे बिठाय ।।
कर पूरण स्वर-साधना, देऊ तुझे बिठाय ।।
देऊ तुझे बिठाय, विराजो मेरे घर में ।
ऐसे गीत लिखाय , हो प्रकाश अंतस में ।।
कह `वाणी` कविराज, चित्त में शुध्दी मुझे दो |
रचूं कुंडली शतक , मात सदबुद्धि मुझे दो ||
शब्दार्थ : सद्बुद्धि = श्रेष्ठ बुद्धि, सदन=भवन , नूतन = नया, अंतस में प्रकाश=आत्मज्ञान
शिल्प कला पर सो कुंडलिया से ली गई कुंडली
कवि अमृत ‘वाणी‘
बुद्धि मुझे दो शारदा