नोटा री गड्डियां
अन कलदारां री खनक में तो
ई दुनिया में हगलाई हमझे ।

पण लाखीणा मनक तो वैज वेवे
 जो रोजाना
मनक ने मनक हमझे ॥

‘वाणी’
अतरी झट बदल जावे
ओळखाण मनकां की
आछा दनां  में मनक
मनक ने माछर  हमझे ।

अन मुसीबतां में
मनक
माछर नै  मनक हमझे ॥

कवि अमृत  ‘वाणी’

मुक्तक 

नोटा री गड्डियां