आकाई गाँव में दो नाम मनकां की जिबान पे छड्या थका हा। एक भगवान शंकर को नाम अन एक वांको लाड़लो परसाद्यो भगत । यो गाँव बस्यो जदकाई ये दोई नाम गाँव के साथे-साथे रिया । गांव वाळा को कसोई काम रूक्यो कोने दन-दन सब प्रकार का आनंद बढ़ताई ग्या ।
शंकर भगवान की मूरत वसान तो शान शकल उं दिखबा में कई खास रूपाळी कोनी ही । वसा’नी देखोतो शंकर भगवान खूदी कसा रूपाळा हा । पार्वती ने पनबा ग्या जीं दन तो वे राजा का भी राजा बींदराजा हा । बड़िया उं बड़िया बण-ठण ने तर्या-तर्या रो श्रृंगार करने पचे पधारता । पण भोळा-भंडारी तो ब्याव की हुणताई पेली ,जसा हा वसाई उठने चाल्ता वण्या , जाणे आकी दुनिया में यांको इज माण्डो मण्डर्यो वे । आकी लागती-बलगती में यांके हरीकाईज एक-एक बराती ने कजाणा कटाउं-कटाउं छांट-छांट न लाया यांकी कळा यै जाणे ।
थाने तो आछी त्र्याउं याद हे नी रामाबा शंकर भगवान की बारात देखबा ने गाँव का जो-जो छोरा-छोरी ग्या वांका मूं बिचारा आदा तो पाछाई न आया । गाँव का मनक घबरार्या वाने पांच-पचास छोरा-छोरी नजरै न आर्या अन उटीने शंकर भगवान ने सरप्राईज वेर्यो वाने वांकी लिस्ट के हिसाब उं पांच-पचास बराती बत्ता कसान नजरे आर्या ।
असो को असोई म्हाके गाँव को परसाद्यो भगत हो ,मने तो यूं लागे के शंकर भगवान की बरात में मोतबिर बरात्या में एक यो भी हो , बींद खोतळी भी ईंज ढाबी । कां के आत्मा तो अजर-अमर हे । कतराई जन्मा उं यो वांके लारे को लारै ।
परसाद्यो भगत आका मळक को एदी हो, कदी तो हापड़बा में तो हमझ्योई न , कतरी दान मनकां इने धो काड़्यो पण वो धोया थका गाबा पेरबो नी हीक्यो । एक कांगस्यो जेब में राकतो हो जींकाउं वो हूर हरीका रूंग्चा ने कदी-कदी बांच लेतो ।
उं नाराण्यो नई तो घणा बरसां तक दरपतो-दरपतो वींकी जामत करतो हो । एक दान हजामत करताईन वीं नई ईंकाउं पैसा मांग लीदा । वो तो जसो उठ्यो वसोई नई का हाराई राटी-राम्चा वाली लोड़ा की पेटी लेने भाग ग्यो । भाग्यो ग्यो –भाग्यो ग्यो। हित्तर साल का बासा हतरा साल का मोट्यार ने पकड़बा दोड़्या वो कई पकड में आवे । आगे जान पेटी ने खोली जीमे नरी खाली जग्या ही जिंमें वीं भाटा भर नाक्या अन पेटी ने उंडा कूड़ा में लेजा नाकी । बिचारा नाराणबा उंई टेम पेले गांव ग्या अन हगरा राच-पीच नवा मोलाया । तुरत-फुरत में नवा न लाता तो दूजै दन मिठूबा घुड़कग्या अन नाराणजी तो मिठूबा का घरका नाई । मसाणा में औजार बना बी-पच्ची जणा की लोड्या कुंकर करता । माथा पे हाथ फेरबा उं थोड़ी लोड्या वेवे ।
वीं दन पचे कसाई नई का बेटा में अतरी ताकत कोने जो केता पेली परसाद्या भगत की जामत न करे । ओर गांव का कसाई नई में अतरी ताकत कोने ही जो जामत कीदा केड़े वींकाउं एक ढींग्लो मांग्ले ।
परसाद्या की जेबां में चोईसी घण्टा त्र्या-त्र्या को परसाद पड्योई रेतो हो । जणी पे वणी को मन राजी वेजातो वणी ने झट खूल्या मंू काडन परसाद दे देतो । बाकी मूंडाउं मांग्बा वाला ने तो वो मंग्ता-मंग्ता के-के न वाने परसादकी जग्या कांकरा दे देतो । यां चक्कर में गाँव का पांच- चार बूडा-ठाडा डोकरा का दांतड़ा जाता र्या । जटा केड़े गाँव का मनक घणा होश्यार वेग्या वे शंकर भगवान को परसाद बनाई देख्या खा लेता पण ईं परसाद्या भगत के हात का परसाद ने पांच – पांच दान देख भाळ ने पचे परसाद आरोगता ।
बालपणा की बात हे वो भणवा जातो जीं दान कदी-कदी वींकी मां वीने आपणी ताकत उं हपड़ा देती। रोट्या तो दरप के मारे क्लाश का छोरा-छोरी मनवार कर-कर ने खुवा देता । सब माड़साब वीने पाचै-पाचैै दरवाजा के भड़े बठाणता ताकि छुटृी वे ताईन भागबा में ईंको पेलो लंबर बण्यो को बण्योई रेवे । कोई छोरो न तो ईंके लारे दोड़तो न आगे न पाछे ओर तो ओर इने आतो थको देक गूंगट वाली लाड़ी दाद्या होराजी ने आता देक एक आड़ीने वे जावे वसान ईज वीने दोड़तो थको देकने बजार मंे सब ं एक आडी ने वे जाता । धन्नाट दोड़तो थको वो असान लागतो जाणे फायर ब्रिगेड की लाल गाड़ी लाय बुझाबा जारी वे ।
एक दन परसाद्या के घरे पाचॅं-पन्द्रा पामणा पीर आया । रोट्या-पाणी खा खुआ न बेठाईज हा अन वो भी आ पूग्यो । थोड़ी देर वी, अन वांकामू एक दाना-घड़ो बोल्यो अजी राजकुमारजी आज मां थांने देखबा के वास्ते आया । यो हुणताई ने परसाद्यो भगत तो सबाका का बचमें गाबा खोल ने बेठग्यो । लो देखो मने । सबाने अपणा मोर बताबा लाग्यो । देखो अटीने तो विज्ञान वाळी मेडम आंग्रा उगाड़ मल्या , वींका उपरे गणित वाळा माड़साब का घूम्मा । अटीने नाळो अंग्रेजी वाळा की कामड़्या ।
वीं दन केड़े वीने कोई देखबा वाळा ई नी आया ओर वींका दो तीन भाई-बेना की हगाया में भी घणा रोबा पड्या । परसाद्या भगत को जीव परसाद में अन शिवाजी का मंदर मेंज रमतो रेेवतो । सुबे शाम शंकर भगवानकी आरती में घण्टिया बजावणो परसाद खा-खा ने पेट भर लेणो । हांझ हुदी पेट में कटै जग्या खाली रेजाती तो चार-पाॅंच मक्की का रोट ढोलकी हरीका पेट में हरका लेणो । बस आकाई दन में इतराक काम की वाने पूरी-पूरी हूद पड़ती ही ।
कुल मिलान कै भी वो परसाद्यो भगत हो तो लाखीणो भगत । 24 घण्टा वो ओम नमः शिवाय का जाप करतोई रेवतो हो । चंदन बाॅंट‘-बाॅंट भगवान के लगातो पचे खुद का करम पे लगातो । मन-मन में कै का कै मन्तर बोल्या करतो । आकाई गाॅंववाळा को दिमाक ठण्डो रेवतो हो । परसाद्यो घणो हुकनी मनक हो। कीनै जाता थका ने हामे मल जातो नी तो वींका अटक्या-बटक्या काम पगई बण जाता ।
गाॅंव का मनक परसाद देबा के वास्ते वाने हमारता फरता अन वो परसाद खाबा के वास्ते मनका ने हमारतो फरतो हो । वीने चेतो राक ने हमारो तो पांच-दस मिनट में वो कटे न कटे मल जातो । बुलावे तो कसाई चंदजी के घरे नी जातो , भूका मरतो मर जातो पण मांग खाबा कींकेै घरे न जातो । अणी बास्ते जींको भी मन वेतो थाळी सजा ने मंदर ले जातो । चार-पांच थाळ्या बाल भोग के नाम की हदैई मंदर पे भगत लोग ले आता । परसाद्यो भोग लगान भावतो जो खातो अन बच जातो वाने जेबां में भर लेतो । दन भर फरतो रेतो थोड़ो थोड़ो चड्या छरकल्या ,गायां ने ,टेगड़ा ने वांदरा ने खवाड़तो रेवतो ।
गाॅंव का टेगड़ा तकात हमेशां मंदर अई-अई न होवता हा । कां के वी भी जाणता हा के वाने रोट्या परसाद्यो भगत खवाड़े । परसाद्यो भगत टेंशन फ्री वेन लांबा टांग्ड़ा करने हू तो रेवतो अन टेगड़ा आकी रात जागता रेता हा । वना पूच्या कोई रात ने मंदर में पग मेल देतोनी ई टेगड़ा असा पाचे पड़ता नी वांको जांगल्यो फाड़ देता । ठेठ वणाने वणाके घरां में वाड़ीन पचे आवता ।
गाॅंव में परसाद्या ने मनका करता कुत्ता ज्यादा हमझ ग्या हा । मतलबी मनक तो अतराई हमझया हा के कोई पेशी पे जार्यो वेतो,कोई कसाई शुभ काम उं कटैै जार्यो वे तो , कोई धंधा पाणी उुं पेले गाँव जार्यो वे तो हूकन परसाद्या का लेन जाता हा । छोर्या हारे-पीर जाती , कोई डिलेवरी पे जाती परसाद्या का हूकन लेन जाती । मन में बोलमा करने जाती हे परसाद्या थूं शंकर भगवान ने कईजै हउ हरीको वे जई तो पाची आन थारे परसादी करूंली ।
शंकर भगवान की कीरपा उं कतराई परिवारां में नवा-नवा कुल-दीपक को उजाळो हुयो । हाॅंचा विशवास वाला मनक मुकद्मा बाजी में जीत्या , कितराई मन धार्या कारज सिद्ध हुया । वीं शिव मंदर को काम वरसां ताई चालतो – चालतो एक विषाल मंदर बण ग्यो । गांवा-गांवा का लोग जोड़ा की धोग देबा के बास्ते वणी शिव मंदर आबा लाग ग्या।
एक साल शिवरात्री के दन हवेर पेली परसाद्यो भगत खूब जोर-जोर की घंटियां बजाई आरती में खूब नाच्यो ओर पचे आलकी-पालकी मार ओम् नमः शिवाय का जाप करबा के वास्ते कजाणा कसाई मोरत में बेठ्यो के दन आंथ बा तई भूखो-तरस्यो जाप करतो र्यो अटीने दन बावजी अस्त वेबा वाळा हा वटीने परसाद्या का प्राण पखेरू उड़ने कठे का कठै चल्या ग्या ।वाने मंदर उं तोक ने वांके घरे लेग्या ।
भजन मण्डली में गाँव वाळा आंसू बहाता थका भोला शंकर से या ही प्रार्थना करी की हे प्रभु ! हर गाँव में असा परसाद्या भगत होणा छावे ओर म्हाके गांव को यो परसाद्यो भगत तो पाछो झट उं झट म्हांका गांव में पाचो आजावे । कोई भजन गाता र्या , कोई घण्टियां बजाता र्या असानी गाता-बजाता आकी रात निकळगी ।
दन उगताई गाँव वाळा अंतिम संस्कार कर परसाद्या ने आंसू टपकती आंख्याउं विदाई दी । गांव री लुगाया पगा चालता छोरा-छोरी अन दूध पीवता टाबर्या ने लेन ठेठ मसाणा तई परीगी , छोर्या उंची-उंची ढाळा ले-ले र अमरनाथ रा गीत गाया । खास-खास लेणा असान की ही परसाद्या भगत अमर रहीजो । जुग-जुग जीजो । पाचा बेगा अईजो परसाद्या भगत की जे ।
थाने तो आछी त्र्याउं याद हे नी रामाबा शंकर भगवान की बारात देखबा ने गाँव का जो-जो छोरा-छोरी ग्या वांका मूं बिचारा आदा तो पाछाई न आया । गाँव का मनक घबरार्या वाने पांच-पचास छोरा-छोरी नजरै न आर्या अन उटीने शंकर भगवान ने सरप्राईज वेर्यो वाने वांकी लिस्ट के हिसाब उं पांच-पचास बराती बत्ता कसान नजरे आर्या ।
असो को असोई म्हाके गाँव को परसाद्यो भगत हो ,मने तो यूं लागे के शंकर भगवान की बरात में मोतबिर बरात्या में एक यो भी हो , बींद खोतळी भी ईंज ढाबी । कां के आत्मा तो अजर-अमर हे । कतराई जन्मा उं यो वांके लारे को लारै ।
परसाद्यो भगत आका मळक को एदी हो, कदी तो हापड़बा में तो हमझ्योई न , कतरी दान मनकां इने धो काड़्यो पण वो धोया थका गाबा पेरबो नी हीक्यो । एक कांगस्यो जेब में राकतो हो जींकाउं वो हूर हरीका रूंग्चा ने कदी-कदी बांच लेतो ।
उं नाराण्यो नई तो घणा बरसां तक दरपतो-दरपतो वींकी जामत करतो हो । एक दान हजामत करताईन वीं नई ईंकाउं पैसा मांग लीदा । वो तो जसो उठ्यो वसोई नई का हाराई राटी-राम्चा वाली लोड़ा की पेटी लेने भाग ग्यो । भाग्यो ग्यो –भाग्यो ग्यो। हित्तर साल का बासा हतरा साल का मोट्यार ने पकड़बा दोड़्या वो कई पकड में आवे । आगे जान पेटी ने खोली जीमे नरी खाली जग्या ही जिंमें वीं भाटा भर नाक्या अन पेटी ने उंडा कूड़ा में लेजा नाकी । बिचारा नाराणबा उंई टेम पेले गांव ग्या अन हगरा राच-पीच नवा मोलाया । तुरत-फुरत में नवा न लाता तो दूजै दन मिठूबा घुड़कग्या अन नाराणजी तो मिठूबा का घरका नाई । मसाणा में औजार बना बी-पच्ची जणा की लोड्या कुंकर करता । माथा पे हाथ फेरबा उं थोड़ी लोड्या वेवे ।
वीं दन पचे कसाई नई का बेटा में अतरी ताकत कोने जो केता पेली परसाद्या भगत की जामत न करे । ओर गांव का कसाई नई में अतरी ताकत कोने ही जो जामत कीदा केड़े वींकाउं एक ढींग्लो मांग्ले ।
परसाद्या की जेबां में चोईसी घण्टा त्र्या-त्र्या को परसाद पड्योई रेतो हो । जणी पे वणी को मन राजी वेजातो वणी ने झट खूल्या मंू काडन परसाद दे देतो । बाकी मूंडाउं मांग्बा वाला ने तो वो मंग्ता-मंग्ता के-के न वाने परसादकी जग्या कांकरा दे देतो । यां चक्कर में गाँव का पांच- चार बूडा-ठाडा डोकरा का दांतड़ा जाता र्या । जटा केड़े गाँव का मनक घणा होश्यार वेग्या वे शंकर भगवान को परसाद बनाई देख्या खा लेता पण ईं परसाद्या भगत के हात का परसाद ने पांच – पांच दान देख भाळ ने पचे परसाद आरोगता ।
बालपणा की बात हे वो भणवा जातो जीं दान कदी-कदी वींकी मां वीने आपणी ताकत उं हपड़ा देती। रोट्या तो दरप के मारे क्लाश का छोरा-छोरी मनवार कर-कर ने खुवा देता । सब माड़साब वीने पाचै-पाचैै दरवाजा के भड़े बठाणता ताकि छुटृी वे ताईन भागबा में ईंको पेलो लंबर बण्यो को बण्योई रेवे । कोई छोरो न तो ईंके लारे दोड़तो न आगे न पाछे ओर तो ओर इने आतो थको देक गूंगट वाली लाड़ी दाद्या होराजी ने आता देक एक आड़ीने वे जावे वसान ईज वीने दोड़तो थको देकने बजार मंे सब ं एक आडी ने वे जाता । धन्नाट दोड़तो थको वो असान लागतो जाणे फायर ब्रिगेड की लाल गाड़ी लाय बुझाबा जारी वे ।
एक दन परसाद्या के घरे पाचॅं-पन्द्रा पामणा पीर आया । रोट्या-पाणी खा खुआ न बेठाईज हा अन वो भी आ पूग्यो । थोड़ी देर वी, अन वांकामू एक दाना-घड़ो बोल्यो अजी राजकुमारजी आज मां थांने देखबा के वास्ते आया । यो हुणताई ने परसाद्यो भगत तो सबाका का बचमें गाबा खोल ने बेठग्यो । लो देखो मने । सबाने अपणा मोर बताबा लाग्यो । देखो अटीने तो विज्ञान वाळी मेडम आंग्रा उगाड़ मल्या , वींका उपरे गणित वाळा माड़साब का घूम्मा । अटीने नाळो अंग्रेजी वाळा की कामड़्या ।
वीं दन केड़े वीने कोई देखबा वाळा ई नी आया ओर वींका दो तीन भाई-बेना की हगाया में भी घणा रोबा पड्या । परसाद्या भगत को जीव परसाद में अन शिवाजी का मंदर मेंज रमतो रेेवतो । सुबे शाम शंकर भगवानकी आरती में घण्टिया बजावणो परसाद खा-खा ने पेट भर लेणो । हांझ हुदी पेट में कटै जग्या खाली रेजाती तो चार-पाॅंच मक्की का रोट ढोलकी हरीका पेट में हरका लेणो । बस आकाई दन में इतराक काम की वाने पूरी-पूरी हूद पड़ती ही ।
कुल मिलान कै भी वो परसाद्यो भगत हो तो लाखीणो भगत । 24 घण्टा वो ओम नमः शिवाय का जाप करतोई रेवतो हो । चंदन बाॅंट‘-बाॅंट भगवान के लगातो पचे खुद का करम पे लगातो । मन-मन में कै का कै मन्तर बोल्या करतो । आकाई गाॅंववाळा को दिमाक ठण्डो रेवतो हो । परसाद्यो घणो हुकनी मनक हो। कीनै जाता थका ने हामे मल जातो नी तो वींका अटक्या-बटक्या काम पगई बण जाता ।
गाॅंव का मनक परसाद देबा के वास्ते वाने हमारता फरता अन वो परसाद खाबा के वास्ते मनका ने हमारतो फरतो हो । वीने चेतो राक ने हमारो तो पांच-दस मिनट में वो कटे न कटे मल जातो । बुलावे तो कसाई चंदजी के घरे नी जातो , भूका मरतो मर जातो पण मांग खाबा कींकेै घरे न जातो । अणी बास्ते जींको भी मन वेतो थाळी सजा ने मंदर ले जातो । चार-पांच थाळ्या बाल भोग के नाम की हदैई मंदर पे भगत लोग ले आता । परसाद्यो भोग लगान भावतो जो खातो अन बच जातो वाने जेबां में भर लेतो । दन भर फरतो रेतो थोड़ो थोड़ो चड्या छरकल्या ,गायां ने ,टेगड़ा ने वांदरा ने खवाड़तो रेवतो ।
गाॅंव का टेगड़ा तकात हमेशां मंदर अई-अई न होवता हा । कां के वी भी जाणता हा के वाने रोट्या परसाद्यो भगत खवाड़े । परसाद्यो भगत टेंशन फ्री वेन लांबा टांग्ड़ा करने हू तो रेवतो अन टेगड़ा आकी रात जागता रेता हा । वना पूच्या कोई रात ने मंदर में पग मेल देतोनी ई टेगड़ा असा पाचे पड़ता नी वांको जांगल्यो फाड़ देता । ठेठ वणाने वणाके घरां में वाड़ीन पचे आवता ।
गाॅंव में परसाद्या ने मनका करता कुत्ता ज्यादा हमझ ग्या हा । मतलबी मनक तो अतराई हमझया हा के कोई पेशी पे जार्यो वेतो,कोई कसाई शुभ काम उं कटैै जार्यो वे तो , कोई धंधा पाणी उुं पेले गाँव जार्यो वे तो हूकन परसाद्या का लेन जाता हा । छोर्या हारे-पीर जाती , कोई डिलेवरी पे जाती परसाद्या का हूकन लेन जाती । मन में बोलमा करने जाती हे परसाद्या थूं शंकर भगवान ने कईजै हउ हरीको वे जई तो पाची आन थारे परसादी करूंली ।
शंकर भगवान की कीरपा उं कतराई परिवारां में नवा-नवा कुल-दीपक को उजाळो हुयो । हाॅंचा विशवास वाला मनक मुकद्मा बाजी में जीत्या , कितराई मन धार्या कारज सिद्ध हुया । वीं शिव मंदर को काम वरसां ताई चालतो – चालतो एक विषाल मंदर बण ग्यो । गांवा-गांवा का लोग जोड़ा की धोग देबा के बास्ते वणी शिव मंदर आबा लाग ग्या।
एक साल शिवरात्री के दन हवेर पेली परसाद्यो भगत खूब जोर-जोर की घंटियां बजाई आरती में खूब नाच्यो ओर पचे आलकी-पालकी मार ओम् नमः शिवाय का जाप करबा के वास्ते कजाणा कसाई मोरत में बेठ्यो के दन आंथ बा तई भूखो-तरस्यो जाप करतो र्यो अटीने दन बावजी अस्त वेबा वाळा हा वटीने परसाद्या का प्राण पखेरू उड़ने कठे का कठै चल्या ग्या ।वाने मंदर उं तोक ने वांके घरे लेग्या ।
भजन मण्डली में गाँव वाळा आंसू बहाता थका भोला शंकर से या ही प्रार्थना करी की हे प्रभु ! हर गाँव में असा परसाद्या भगत होणा छावे ओर म्हाके गांव को यो परसाद्यो भगत तो पाछो झट उं झट म्हांका गांव में पाचो आजावे । कोई भजन गाता र्या , कोई घण्टियां बजाता र्या असानी गाता-बजाता आकी रात निकळगी ।
दन उगताई गाँव वाळा अंतिम संस्कार कर परसाद्या ने आंसू टपकती आंख्याउं विदाई दी । गांव री लुगाया पगा चालता छोरा-छोरी अन दूध पीवता टाबर्या ने लेन ठेठ मसाणा तई परीगी , छोर्या उंची-उंची ढाळा ले-ले र अमरनाथ रा गीत गाया । खास-खास लेणा असान की ही परसाद्या भगत अमर रहीजो । जुग-जुग जीजो । पाचा बेगा अईजो परसाद्या भगत की जे ।
परसाद्यो भगत (राजस्थानी कहानी)