एक नेताजी की
जमी जमाई दूकान 
असी खतम होगी ,
कि
ईं चुनाव में तो 
वांकी जमानत ही जप्त होगी ।
बाजार में 
मारा पग पकड़ 
बोल्या मर्यो कविराज ,
ईं चुनाव में 
मारी ईं भारी हार को
थोड़ो बताओ राज ।
में धोती उठाके 
सबने वो निषान दिखायो ,
झटे नेताजी के 
छ महीना पेली 
एक पागल कुत्ते खायो ।
में बोल्यो 
कुत्ता का काटबा से 
खून में ईमानदारी बढ़गी,
ओर ईं रिएक्षन से 
दूजो कुर्सी पे छडग्यो 
अन कुर्सी थांका पे छडगी । 
कुत्ता का जेर से
राजनीति को 
सारोई जेर कटग्यो ,
ओर यो एक ही कारण 
जो
अबकी बार 
थूं कुर्सी सेई हटग्यो । 
स्ुाणोजी नेताजी 
राजनीति में 
भारी विनाष हो जातो ,
वो कुत्तो जो पागल नी होतो 
तो थांको  स्वर्गवास हो जातो । 
    
नेताजी बोल्या 
थूं मारा दोष्त होयके 
या बात  केवे ,
मने तो वा बात बता 
के ईंज राजनीति में 
पाछो कसान लेवे । 
में बोल्यो करवालो 
डाकूआं का अड्डा में रिजर्वेषन ,
लगवाओ सुबह-षाम 
सांप का इंजेक्षन पे इंजेक्षन । 
कुकर्म का दो केपसूल 
गबन की चार गोळ्या पाओ ,
अय्यासी की हवा , दारू की दवा 
या कोर्स छ महीना खाओ । 
डाकू जो मानग्या थाने 
हमेषा उंची मूंछ रहेगी ,
अरे कमीषन लेबोई सीखग्या 
तोई विदेषां तक  पूंछ रहेगी  । 
परदादा के दादा को 
यो जूनो कोट भी उठै धूलेगो ,
थू सब जाणेगो ,
पण जाण के भी सब भूलेेगो ।   
थू नटतो-नटता खावेगो
ओर खाके झट नट जावेगो ,
पण याद राखजे 
थे छीप के कटे बीड़ी भी पी
तो धूंओ अठै  आवेगो।
रचनाकारःअमृत‘वाणी‘




