मां शारदा की खास मेहरबानी से कलम और ख्याली ओजारों से वक्त के खाते में से वक्त बेवक्त कुछ-कुछ वक्त निकाल कर उन तमाम हीरों को जहां तक मुनासिब हुआ तराशने की मैं मेरी ओर से लाजवाब कोशिसे करता रहा हूं । तराशते -तराशते अल्फाजी अक्ष जिस-जिस सूरत पर आकर ठहर गया मैं वही उसकी मुक्कमल मंजिल मान कर रूहानी कामयाबी के उन नूरानी पैमानों को दिल से आखिरी सलाम अर्ज कर छोटी सी जिंदगानी के सफरनामें की मेरी छोटी सी किताब के पन्ने पलटता गया ।