बुद्धि मुझे दो शारदा

बुद्धि मुझे दो शारदा, सदन शीघ्र बन जाय ।कर पूरण स्वर-साधना, देऊ तुझे बिठाय ।। देऊ तुझे बिठाय, विराजो मेरे घर में ।ऐसे गीत लिखाय , हो प्रकाश अंतस में ।। कह `वाणी` कविराज, चित्त में शुध्दी मुझे दो |रचूं

एक्स्ट्रा क्लास

बस्ता उठा टिंकू चला , चार चोराहे पार |थक कर जब स्कूल पहुंचा , पता लगा रविवार ||पता लगा रविवार , नहीं बजेगा घंटा घंटी |पड़ेगी घर पर मार  , नहीं कल की गारंटी ||फिर चलाया दिमाग , मम्मी करनी

कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।

राम चालीसा कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।किरपा करजो मोकळी ,रोज नमावां सीसहुणजो माता जानकी ,दया करे रघुवीर ।चारो  पुरसारथ मले, ओर मले मावीर ।। शब्दार्थ -लाड़ला-परम प्रिय, केवावे-कहलाते है ,जग- संसार,मोकळी-अपार,रोज-प्रतिदिन,नमावां-नमन करते, सीस-मस्तकभावार्थः-कौशल्या माता के अनन्य , प्रिय पुत्र

बहरे कई प्रकार के

बहरे      कई   प्रकार   के,    भांत –     भांत   के लाभ |जब तक काम पड़े  नहीं, तब तक लाभ ही लाभ ||तब तक लाभ ही लाभ ,  चिल्ला कर वक्ता  कहे |मन मन हँसता जाय , वक्ता का  पसीना बहे ||कह ‘वाणी’

आज भी जिंदा है

शहीदों की अंतिम श्वांसो पर हर इतिहासआज भी जिंदा हैचंद बंदों की खिदमतों परआसमां का खुदाआज भी जिंदा हैं सुर-ताल सेकलमकारोंआग और पानीबरसाओं तो जानेवेदीपक और मल्हार रागें तोआज भी जिंदा हैं ।

हरे वृक्ष मत काटो

किसको खबर है पल की , कब तक क्या हो जाय । होती कमी अब जल की, कौन कहाँ तक जी पाय ।। कौन कहाँ तक जी पाय , चले कोठियों में कुलर । करे फ्रीज जल-पान , तपे निर्धन

करगेंट्या के न्यान

जीत गयो र जीत गयो , वोटां वाळी जीत ।ढोल-नगाड़ा आज से , गावे थांका गीत ।।गावे थांका गीत , खुशबू वाळी माळा ।या तो मनखां जीत ,था मती करिजो छाळा ।।के ’वाणी’ कविराज , जा‘गा बारा के भाव ।करगेंट्या

मिटटी का फैंसला

लाल कोठी परलगी संगमरमर की फर्शफर्श पर चांदी का सिंहासनजिस पर बैठाकबर में पैर लटकाएबुड्डा कुबेरकांपते हुए हाथों सेथामी हुईसोने की थालीसोने की कटोरियों मेंचांदी के चम्मचडूबे हुए मूंग की दाल के हलवे मेंऔर पास मेंकाजू बादाम वालेदूध का गिलास

चाँद

बार–बार देखें सभी , इतना प्यारा रूप ।कोई कहता चांदनी , कोई कहता धूप ।।कोई कहता धूप , करे सब नो–नो बातें ।एक उपाय विवाह , चांदनी सी सब रातें ।।कह ‘वाणी’ कविराज, दिल की सुनो पुकार ।अपना है जब